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अपनी सनातन संस्कृति एवं परंपरा को न भूले-आचार्य धरणीधर जी महाराज

श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन भगवान राम के बाल लीला का कथा प्रसंग सुनाया*

 

*सन्तकबीरनगर।* विकासखंड बघौली अंतर्गत ग्राम पंचायत उतरावल में चल रहे श्री राम कथा के चौथे दिन आचार्य धरणीधर जी ने भगवान राम की सुंदर बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि बचपन से ही लक्ष्मण जी की राम जी के चरणों में प्रीति थी। और भरत और शत्रुघ्न दोनों भाइयों में स्वामी और सेवक की जिस प्रीति की प्रशंसा है, वैसी प्रीति हो गई। वैसे तो चारों ही पुत्र शील, रूप और गुण के धाम हैं लेकिन सुख के समुद्र श्री रामचन्द्रजी सबसे अधिक हैं। माँ कौशल्या कभी गोदी में लेकर भगवान को प्यार करती है। कभी सुंदर पालने में लिटाकर ‘प्यारे ललना!’ कहकर दुलार करती है, जो भगवान सर्वव्यापक, निरंजन (मायारहित), निर्गुण, विनोदरहित और अजन्मे ब्रह्म हैं, वो आज प्रेम और भक्ति के वश कौसल्याजी की गोद में खेल रहे हैं। महाराज जी ने बताया कि एक बार माता कौशल्या ने श्रीराम को स्नान और श्रृंगार करा कर झूला पर सुला दिया और स्वयं स्नान कर अपने कुलदेव की पूजा कर नैवेद्य भोग लगाकर पाक गृह गई। जब वह पुन: लौट कर पूजा स्थल पर आई तो उन्होंने देखा कि देवता को चढ़ाए गए नैवेद्य शिशुरूपी भगवान राम भोजन कर रहे हैं। जब उन्होंने झूला पर जाकर देखा तो वहां भी उन्होंने श्री राम को झूले पर सोते पाया। इस दृश्य को देखकर कौशल्या डर गई और कांपने लगी। माता की अवस्था देख श्री राम ने माता को अपना विराट रूप दिखाकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया। भगवान का विराट रूप देखकर कौशल्या माता प्रफुल्लित हो उन के चरणों पर गिर पड़ी। बालरूप भगवान की भक्ति में देवता भी मगन थे। जिनका नाम सुनना ही शुभ है उनका साक्षात दर्शन का फल कौन प्राप्त करना नही चाहेगा। कथा प्रवक्ता आचार्य धरणीधर जी महाराज ने कहा कि जिस भगवान की गोद में ब्रह्माण्ड खेलता है, वह भगवान बालरूप में माता कौशल्या की गोद में खेलते हैं। जिनकी गोंद में दुनियाँ हँसती रोती है वे माता कौशल्या की गोद में कभी रोते हैं तो कभी हंसते है। भगवान की बाललीला अदभुत और मनमोहक है।कथा में आगे वर्णन करते हुए आचार्य धरणीधर जी महाराज कहते है कि आज भारत का बचपन नष्ट हो रहा है। बचपन नष्ट करने वाले कोई और नहीं, बल्कि उनके परिवार ही हैं। यदि बचा सके तो आज बचपन बचाएँ। बच्चे अपने परिवार की पाठशाला में ही सर्वप्रथम सीखतें हैं। हमारा पारिवारिक जीवन जैसा होगा, भावी पीढ़ी भी वैसी ही होगी। परिवार में जैसे संस्कार होगें, वैसा ही संस्कार बालक सीखता है। कथाव्यास कहते है कि यदि वृक्ष को हरा-भरा देखना है तो उसके मूल में पानी डालों, पत्ते सींचने से क्या होगा। अतः यदि देश में संस्कारवान पीढ़ी खड़ा करनी हो तो बच्चों के बचपन को संस्कारवान बनाया जाय।आगे, कथा में महाराजा दशरथ के चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार सम्पूर्ण हुआ। महर्षि वशिष्टि द्वारा चारों पुत्रों का नामकरण और उनकी महिमा का उल्लेख कथा का केन्द्र बिन्दु बना । उन्होंने कहा कि वास्तव में संत धरती पर धर्म की रक्षा के लिए आते हैं, राष्ट्र की रक्षा के लिए आते हैं। संत परमात्मा की करूणा के अवतार हैं। संत चलते-फिरते साक्षात तीर्थ हैं। दैनिक यजमान के रूप में गंगाधर राय,विद्यावती राय,अनंत राय ज्योतिमा राय,आशुतोष राय,इन्द्रदेव राय उर्फ फागू राय,डॉ तीर्थराज राय शंभुनाथ राय,राजेश सिंह,अनिरुद्ध राय,सुरेश पाण्डेय,सुभाष पाण्डेय,भजन गायक गोरखनाथ मिश्र,सत्य नारायण सिंह,महादेव यादव,नरेंद्र यादव,बजरंगी गौड़, मनीष कुमार पाण्डेय समेत तमाम लोग मौजूद रहे।

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