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‘यादव लैंड’ में मुसलमानों के सहारे बाज़ी पलटने की कोशिश में अखिलेश

उत्तर प्रदेश में रविवार यानि 20 फरवरी को तीसरे चरण के लिए मतदान होना है. तीसरे चरण में 16 जिलों की 59 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इन 16 ज़िलों में से 8 यादव बहुल हैं. लिहाज़ा इस इलाक़े को ‘यादव लैंड’ कहा जाता हैं. इन ज़िलों में 29 सीटें हैं. यहां मुलायम सिंह यादव का पुराना यादव-मुस्लिम गठजोड़ (यानि एम-वाई समीकरण) शुरू से ही मज़बूत रहा है. पिछले चुनाव में हिंदुत्व और मोदी लहर में ये समीकरण बिखर गया था. लिहाज़ा तब बीजेपी ‘यादव लैंड’ पर भगवा फहराने में कामयाब हो गई थी.

इस बार अखिलेश मुसलमानों का भरोसा जीत कर बाज़ी पलटने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं. मोदी-योगी ने भी अपना क़िला बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर ली है. ‘यादव लैंड’ में अखिलेश के सामने बाज़ी पलटने की बड़ी चुनौती है. यहां उनकी पार्टी और उनकी खुद की साख़ दांव पर लगी हुई है. वो मैनपुरी की करहल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी जीत पक्की तो मानी जा रही है. लेकिन आसान नहीं है. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अखिलेश के समर्थन में खुद मुलायम सिंह यादव को प्रचार में उतरना पड़ा. बीजेपी ने भी ‘यादव लैंड’ में समाजवादी पार्टी को एक बार फिर पटखनी देने और अखिलेश को उनकी सीट पर घेरने के लिए पूरा चक्रव्यूह रच दिया है.

दरअसल यहां यादव भी दो ख़ेमों में बंटे हुए हैं. एक ख़ेमा बीजेपी समर्थक है. इसी की बदौलत पिछली बार बीजेपी यहां सपा को कमजोर करने में कामयाब हो गई थी. इसकी काट के लिए मुलायम सिंह यादव को मैदान में उतरना पड़ा. वो ही यादवों में दो गुटों के बीच की दरार को पाटने की क्षमता रखते हैं.

योगी की करहल से ललकार

तीसरे चरण के चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘यादव लैंड’ की सबसे चर्चित सीट करहल से ही अखिलेश को ललकारा. ग़ौरतलब है कि बीजेपी ने अखिलेश को हराने लिए लंबे समय तक मुलायम सिंह के बेहद क़रीबी और वफादार रहे प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा है. कुछ दिन पहले बघेल के काफिले पर हमला हुआ था.

बघेल के लिए प्रचार करते हुए योगी ने अखिलेश यादव पर तंज कसते हुए कहा, “यादव परिवार की हालत ऐसी है कि चाचा को कुर्सी नहीं मिली. पिता को अपने बेटे का नाम नहीं याद हैं.” ग़ौरतलब है कि अखिलेश के लिए वोट मांगने उतरे मुलायम सिंह यादव अपनी चुनावी सभा में अखिलेश यादव का नाम भूल गए थे. बाद में धर्मेंद्र यादव ने उन्हें पर्ची देकर याद दिलाया था कि उन्हें अखिलेश यादव के लिए वोट की अपील करनी है. योगी ने इसी को मुद्दा बना कर अखिलेश पर तंज कसा.

अखिलेश पर योगी के वार

पिछले चुनाव में जीता ‘यादव लैंड’ बचाने आए योगी समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव पर जमकर बरसे. उन्होंने अखिलेश पर खूब तंज कसे. उन्होंने कहा, “समाजवादी पार्टी के लोग बौखला गए हैं. प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल पर हुआ हमला उनकी कायरना हरकत को प्रदर्शित करता है. ये गर्मी 10 मार्च के बाद अपने आप शांत हो जाएगी. अब ये दुर्गति हो गई है कि पिता, पुत्र का नाम न जान रहा हो.”

सीएम योगी ने कहा, “मैनपुरी में पहली बार बीजेपी चार की चार सीटों पर अपनी विजय पताका फहराएगी.” सीएम ने अखिलेश पर तंज कसते हुए कहा कि यादव परिवार की हालत ऐसी है कि चाचा को कुर्सी नहीं मिली. पिता को अपने बेटे का नाम नहीं याद है. एसपी सिंह बघेल ने ‘उनको’ पांचवें दिन ही यहां आने के लिए मजबूर कर दिया. बीजेपी ने बघेल के ज़रिए अखिलेश को उन्हीं के गढ़ में कड़ी चुनौती देकर उन्हें बांधने की रणनीति बनाई थी. इसमें वो काफी हद तक कामयाब रही है.

अखिलेश पर योगी के वार

पिछले चुनाव में जीता ‘यादव लैंड’ बचाने आए योगी समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव पर जमकर बरसे. उन्होंने अखिलेश पर खूब तंज कसे. उन्होंने कहा, “समाजवादी पार्टी के लोग बौखला गए हैं. प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल पर हुआ हमला उनकी कायरना हरकत को प्रदर्शित करता है. ये गर्मी 10 मार्च के बाद अपने आप शांत हो जाएगी. अब ये दुर्गति हो गई है कि पिता, पुत्र का नाम न जान रहा हो.” सीएम योगी ने कहा, “मैनपुरी में पहली बार बीजेपी चार की चार सीटों पर अपनी विजय पताका फहराएगी.” सीएम ने अखिलेश पर तंज कसते हुए कहा कि यादव परिवार की हालत ऐसी है कि चाचा को कुर्सी नहीं मिली. पिता को अपने बेटे का नाम नहीं याद है. एसपी सिंह बघेल ने ‘उनको’ पांचवें दिन ही यहां आने के लिए मजबूर कर दिया. बीजेपी ने बघेल के ज़रिए अखिलेश को उन्हीं के गढ़ में कड़ी चुनौती देकर उन्हें बांधने की रणनीति बनाई थी. इसमें वो काफी हद तक कामयाब रही है.

मुलायम का अभेद्य किला रहा है करहल

दरअसल मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी का 2017 के चुनाव तक इस इलाके में वर्चस्व रहा है. 1992 में अपनी स्थापना के बाद से ही करहल सपा का एक अभेद्य किला रहा है. 2012 में सपा ने अपने गढ़ में 24 सीटें जीती थीं. लेकिन भगवा लहर ने 2017 में इसे ध्वस्त कर दिया था. अपने परिवार और पार्टी की साख़ दोबारा हासिल करने के लिए अखिलेश चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने के लिए मैनपुरी जिले की करहल सीट से उतरे हैं. साथ ही उन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव को इटावा की जसवंतनगर सीट से चुनावी मैदान में उतारा है. यादव परिवार का पैतृक गांव सैफई, करहल से कुछ 8 किलोमीटर दूर है. बहुत पहले जब सैफई एक छोटा सा गांव था, करहल इसका सबसे नजदीकी बाजार हुआ करता था. करहल के जैन इंटर कॉलेज में मुलायम और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों ने शिक्षा प्राप्त की है.

करहल में कड़ा संघर्ष

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान पिछले 20 वर्षों में सैफई ने एक अलग ही विकास देखा है. इस छोटे से गांव में अपनी हवाई पट्टी, स्टेडियम, स्विमिंग पूल, चिकित्सा विश्वविद्यालय और शानदार सड़कों के साथ अन्य सुविधाएं भी मौजूद हैं. हालांकि करहल पिछले 30 साल से सपा का किला बना हुआ है. पिछले महीने तक करहल अपने चमकते पड़ोस की छाया में रहा. अखिलेश यादव के यहां से चुनाव में उतरने के ऐलान के बाद से ही यहां सियासी सरगर्मियां तेज़ हो गईं. अखिलेश अपने घरेलू मैदान से चुनाव में उतर रहे हैं, जिससे पूरे क्षेत्र के सपा कार्यकर्ताओं में खासा जोश और उत्साह है. बीजेपी ने अखिलेश को बांधने के लिए राजनीतिक चक्रव्यूह रचा. मोदी सरकार में मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल को अखिलेश के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया गया है. बीजेपी के शीर्ष नेताओं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य, सभी ने करहल में बीजेपी के उम्मीदवार को इस चुनौती से लड़ने के लिए पूरा साथ देकर सक्षम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

जातीय समीकरण साधने की कोशिश

तीसरे चरण के चुनाव में बीजेपी और सपा दोनों ही एक बार फिर जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश कर रही हैं. जहां बीजेपी ध्रुवीकरण के सहारे हिन्दू वोटों को एकजुट करने की कोशिशों में है, वहीं अखिलेश ने महानदल और अपना दल (कृष्णा) के जरिए गैर यादव पिछड़ी जातियों को साधने की कोशिश की है. तीसरे चरण में बीजेपी के सामने पिछले चुनाव में जीती 49 सीटें बचाने की चुनौती है. तो सपा की साख दांव पर है. पिछले चुनाव में अपने प्रभाव वाले इन जिलों में सपा की हुई दुर्गति से उनके परिवार और पार्टी की साख मिट्टी मे मिल गई थी. अखिलेश यादव के सामने अपने गढ़ में खिसक चुके पार्टी के सियासी आधार को दोबारा से हासिल करने की बड़ी चुनौती है.

‘यादव लैंड’ में लहराया था भगवा

पिछले चुनाव में सपा को ‘यादव लैंड’ में बीजेपी से कड़ी चुनौती मिली थी. वो दूसरे चरण की 59 में से सिर्फ 9 सीटें ही जीत पाई थी. लेकिन 32 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. यादव बेल्ट के कासगंज की तीन सीटें और तीनों बीजेपी के खाते में गईं. हाथरस की तीनों सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. एटा की चारों सीटें बीजेपी ने जीतीं, फर्रुखाबाद की चारों सीटें बीजेपी को मिलीं. औरैया जिले की तीनों सीट, कानपुर देहात की सभी चारों सीटें और ललितपुर में दोनों सीटें बीजेपी ने जीती थी. वहीं, फिरोजाबाद की पांच में से चार सीटें बीजेपी और एक सीट सपा को मिली थी. ऐसे ही मैनपुरी की चार सीटों में से तीन सीटें सपा और एक सीट बीजेपी को मिली थी कन्नौज जिले की तीन सीटों में से दो बीजेपी और एक सपा को मिली. इटावा की तीन सीट में से 2 बीजेपी और एक सपा ने जीती थी. अब अखिलेश के सामने बाजी पलटने की बड़ी चुनौती है.

मुसलमान बन सकते हैं अखिलेश के खेवनहार

‘यादव लैंड’ के आठ ज़िलों में अखिलेश को इस बार मुस्लिम मतदाताओं का एकतरफा समर्थन मिलने की उम्मीद है. इसी के सहारे वो बाज़ी पलटने की कोशिश कर रहे हैं. इन आठों ज़िलो में 25-35 फीसदी तक यादव हैं और 5 से 16 प्रतिशत तक मुसलमान हैं. यहां मुसलमानों के पास सीमित विकल्प हैं. पिछल चुनाव में मुस्लिम वोट बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के बीच बंटा था. इससे बीजेपी को फायदा हुआ था.

दरअसल ‘यादव लैंड’ के ज़िलों में सबसे ज़्यादा मुस्लिम मतदाता कन्नौज में 16.54 फीसदी, उसके बाद कासगंज में 14.88 फीसदी, फर्रुख़ाबाद में 14.69 फीसदी, फिरोज़ाबाद में 12.6 फीसदी, एटा में 8.25 फीसदी, औरैया में 7.39 फीसदी, इटावा में 7.2 फीसदी और मैनपुरी में सबसे कम 5.39 फीसदी हैं. पहले दो चरणों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा गठबंधन को मुसलमानों का एकतरफा वोट मिलने की ख़बरें आई हैं. तीसरे चरण में भी इस सिलसिले के जारी रहने की संभावना है.

‘यादव लैंड’ के इन आठ ज़िलों की 29 विधानसभा सीटों पर अगर सपा गठबंधन को मुसलमानों का एकतरफा समर्थन मिलता है तो अखिलेश बाजी पलटने में कामयाब हो सकते हैं. इस हिसाब से उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की तीसरा चरण अखिलेश को सत्ता की दहलीज़ के नज़दीक ला सकता है तो सत्ता के गलियारों से योगी की दूरी बढ़ा सकता है. इस लिए तीसरा चरण योगी और अखिलेश दोनो के लिए करो या मरो की लड़ाई बन गया है.

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