अंग्रेजों ने हमें स्वरोजगार से भटकाकर गुलामी की ओर धकेला

- जागृति के बरगद सभागार में स्वदेशी जागरण मंच द्वारा आयोजित विचार वर्ग का पहला दिन
- स्वदेशी अपनाने और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर दिया गया ज़ोर
गौरव कुशवाहा
देवरिया: आज से 70 साल पहले कृषि, बागवानी और पशुपालन ऐसे व्यवसाय थे जिनसे भारत का लगभग हर व्यक्ति जुड़ा था। घर-घर कुछ न कुछ उत्पादन होता था। हम विदेशी वस्तुओं पर निर्भर नहीं थे। अंग्रेजों ने हमें सुनियोजित साजिश के तहत स्वरोजगार से भटकाकर गुलामी की मानसिकता की ओर धकेला। तब से हम अपनी क्षमताओं को भूलकर नौकरी की तलाश में भटकने लगे। यह बातें स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय सह-संयोजक व बाबा भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजकुमार मित्तल ने कही। वह बृहस्पतिवार को जागृति के बरगद सभागार में आयोजित दो दिवसीय विचार वर्ग में बतौर मुख्य अतिथि सत्र को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि स्वदेशी अपना भारतीय विचार है। हमें रोज़मर्रा की वस्तुओं में स्वदेशी उत्पादों का इस्तेमाल करना चाहिए और अपने देश को 2047 तक प्रधानमंत्री की विकसित राष्ट्र की संकल्पना को पूरा कराने में भागीदार बनना चाहिए। सदर सांसद व स्वावलंबी भारत अभियान के अखिल भारत नीति प्रमुख शशांक मणि ने कहा कि सबसे ज़रूरी है कि हम ‘स्व’ को पहचानें, जिसमें हमारी सभ्यता के अनुरूप नवाचार का समावेश हो। अंग्रेजों के समय से चली आ रही नौकरशाही व्यवस्था का अंत करने में संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। जागृति का इनक्यूबेशन सेंटर एक उदाहरण है जो, पूर्वांचल में उद्यमिता की अलख जगा रहा है।
मंच के राष्ट्रीय सह-संगठक सतीश जी ने कार्यक्रम को वर्चुअल संबोधित करते हुए कहा कि अमेरिका टैरिफ की धमकी दे रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के वक्त भारत के प्रति चीन का रुख भी सबने देखा। सैन्य शक्ति में इनसे हम भले ही पीछे हैं, लेकिन 145 करोड़ की आबादी इन विदेशियों को घुटने पर लाने के लिए कम नहीं है। 1906 में हमने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके अंग्रेजों को झुकाया था, एक बार फिर वही समय आ गया है कि हम स्वदेशी का इस्तेमाल करके विदेशी वस्तुओं का खुलकर बहिष्कार करें।
स्वावलंबी भारत अभियान की महिला समन्वयक प्रो. दिव्या रानी सिंह ने उद्यमिता की विस्तृत संभावनाओं पर प्रकाश डाला। पूर्वी उप्र क्षेत्र संयोजक अनुपम श्रीवास्तव ने कहा कि हमसे पैसे कमाकर विदेशी हमारे ही देश के खिलाफ साजिशें रच रहे हैं। कार्यक्रम को कौशल किशोर तिवारी, डॉ. चंद्रप्रकाश राय, रविकांत, शुभम त्रिपाठी आदि ने संबोधित किया।