तिलकधारी पीजी कॉलेज की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का आरोप, गाजीपुर के सहायक प्रोफेसर पर फर्जी दस्तावेज़ों के माध्यम से साजिश रचने का आरोप

जौनपुर। तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर के मनोविज्ञान विभाग में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने एक गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि पी.जी. कॉलेज गाजीपुर के सहायक आचार्य मनोज कुमार सिंह ने सुनियोजित तरीके से कॉलेज की प्रतिष्ठा और विभाग की गरिमा को ठेस पहुंचाने की कोशिश की है।
डॉ. गुप्ता के अनुसार, मनोज कुमार सिंह ने संस्थान से संबंधित फर्जी दस्तावेजों का दुरुपयोग करते हुए उन्हें विभिन्न मंचों पर शिकायत के रूप में प्रस्तुत किया। इन दस्तावेजों की वैधता संदिग्ध है और यह गंभीर जांच का विषय है कि ये दस्तावेज़ उनके पास किस माध्यम से और कैसे पहुंचे।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि वे स्वयं तथा विभाग की दो महिला प्राध्यापिकाएं पहले ही इस विषय में संयुक्त शिकायत विश्वविद्यालय प्रशासन को सौंप चुकी हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मनोज सिंह ने पीएच.डी. कोर्स वर्क को विश्वविद्यालय के नियमों की अवहेलना करते हुए अन्य महाविद्यालय से बिना स्वीकृत अवकाश लिए पूर्ण किया, जो पीएच.डी. अध्यादेश का खुला उल्लंघन है।
गंभीर बात यह है कि डॉ. गुप्ता के अनुसार, मनोज कुमार सिंह ने पीएच.डी. उपाधि प्राप्त होने से पहले ही अपने नाम के साथ “डॉ.” का प्रयोग करना शुरू कर दिया था, जो शैक्षणिक मर्यादा के विरुद्ध है। साथ ही, वे स्वयं को “विभागाध्यक्ष” के रूप में प्रस्तुत करते रहे, जबकि महाविद्यालय में ऐसा कोई स्वीकृत पद ही नहीं है।
डॉ. गुप्ता ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि वे 7 सितंबर 2017 से संस्थान में कार्यरत हैं और नियुक्ति तिथि के आधार पर मनोज कुमार सिंह से वरिष्ठ हैं। यही नहीं, विश्वविद्यालय द्वारा जारी वरीयता सूची में उन्हें मनोविज्ञान विषय का संयोजक नामित किया गया है, जबकि मनोज कुमार सिंह को केवल पीजी सदस्य के रूप में शामिल किया गया है।
डॉ. गुप्ता ने स्पष्ट किया कि मनोविज्ञान विषय को तिलकधारी पीजी कॉलेज में 1992 में अस्थायी रूप से और 1998 में स्थायी रूप से मान्यता मिल चुकी है, जिसे माननीय कुलाधिपति द्वारा अनुमोदित किया गया था।
उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध जांच की मांग करते हुए कहा कि यदि लगाए गए आरोप सत्य सिद्ध होते हैं, तो मनोज कुमार सिंह की पीएच.डी. उपाधि को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाना चाहिए।