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सरदार पटेल को 28 वोट मिले, लेकिन दो वोट पाकर नेहरू प्रधानमंत्री बन गए: अमित शाह

लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को जवाब दिया। उन्होंने कहा कि वो (विपक्ष) कहते हैं कि भाजपा को कभी सत्ता विरोधी लहर का सामना नहीं करना पड़ता। सत्ता विरोधी लहर का सामना तो उन्हें करना पड़ता है जो जनहित के विरुद्ध काम करते हैं।

उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का कम सामना करना पड़ता है। हमारी सरकारें बार-बार चुनकर आती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि हम 2014 के बाद कोई चुनाव नहीं हारे। छत्तीसगढ़ 2018 में हारे, राजस्थान 2018 में हारे, मध्य प्रदेश 2018 में हारे, कर्नाटक 2014 के बाद हारे, तेलंगाना हम जीत नहीं पाए, चेन्नई हम जीत नहीं पाए, और बंगाल भी हारे।

अमित शाह ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि तब तो आप नए कपड़े पहनकर शपथ ले लेते हैं, उस वक्त मतदाता सूची का विरोध नहीं करते थे, लेकिन जब बिहार की तरह मुंह की पटकनी पड़ती है, तब मतदाता सूची गलत होती है। लोकतंत्र में दोहरे मापदंड नहीं चलेंगे।

उन्होंने कहा कि चुनावी धांधली या ‘वोट चोरी’ का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि स्वतंत्रता के बाद देश के प्रधानमंत्री का चुनाव राज्य प्रमुखों के वोटों के आधार पर होना था। सरदार पटेल को 28 वोट मिले, जबकि नेहरू को केवल दो। फिर भी, आश्चर्यजनक रूप से, नेहरू प्रधानमंत्री बन गए। जब कोई अयोग्य व्यक्ति मतदाता बन जाता है तो इसे भी वोट चोरी का मामला माना जाता है।

उन्होंने कहा कि हाल ही में दिल्ली की अदालत में एक विवाद दायर किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सोनिया गांधी को आधिकारिक तौर पर भारत की नागरिकता बनने से पहले ही देश की मतदाता सूची में शामिल कर लिया गया था।

उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनी गईं। राज नारायण इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे और कहा कि यह चुनाव नियमों के अनुसार नहीं हुआ है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि यह चुनाव सही तरीके से नहीं जीता गया है, इसलिए इसे रद्द किया जाता है। उसके बाद इस ‘वोट चोरी’ को ढकने के लिए संसद में कानून लाया गया कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई केस ही नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि अभी-अभी दिल्ली की अदालत में एक वाद पहुंचा है कि सोनिया गांधी इस देश की नागरिक बनने से पहले मतदाता बनीं। हम भी विपक्ष में बैठे हैं। हमने जितना चुनाव जीते हैं, उससे ज्यादा हारे हैं। हम लोगों की आधे से ज्यादा जिंदगी विपक्ष में चली गई। लेकिन हमने चुनाव आयोग या चुनाव आयुक्त पर कभी आरोप नहीं लगाया है। चुनाव में आपकी हार का मुख्य कारण आपका नेतृत्व है, मतदाता सूची या ईवीएम नहीं। एक दिन, कांग्रेस कार्यकर्ता इस हार के कारणों पर सवाल उठाएंगे।

उन्होंने कहा कि 2014 में नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री बने, तब से इन्हें (विपक्ष) आपत्ति है। हम 2014 से 2025 तक लोकसभा और विधानसभा मिलकर कुल 44 चुनाव जीते हैं, लेकिन वो (विपक्ष) भी अलग-अलग विधानसभा मिलाकर कुल 30 चुनाव जीते हैं। अगर मतदाता सूची भ्रष्ट है, तो क्यों शपथ ली?

उन्होंने कहा कि 15 मार्च 1989 को राजीव गांधी के शासनकाल में ईवीएम लाई गई थी। 2002 में याचिका दायर हुई, तो इस देश के सर्वोच्च न्यायालय के जजों ने ईवीएम के बदलाव को उचित ठहराया। ये सर्वोच्च न्यायालय को नहीं मानते, ये राजीव गांधी को भी नहीं मानते। 1998 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 16 विधानसभा सीटों में इसका ट्रायल लिया गया। हर प्रकार से जांच करके ईवीएम का उपयोग 2004 में किया गया, और 2004 के चुनाव में कांग्रेस जीत गई। उस समय ईवीएम पर चर्चा बंद हो गई।

अमित शाह ने कहा कि 2009 का चुनाव भी ईवीएम से हुआ, ये जीत गए, और चर्चा फिर बंद हो गई। जब इनके जमाने में चुनाव होते थे, बिहार और यूपी में पूरे के पूरे पर्चों के बक्से गायब हो जाते थे। ईवीएम आने के बाद यह सब बंद हो गया। चुनाव की चोरी बंद हुई है, इसलिए पेट में दर्द हो रहा है। दोष ईवीएम का नहीं है, चुनाव जीतने का तरीका जनादेश नहीं था, भ्रष्ट तरीका था। आज ये एक्सपोज हो चुके हैं।

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