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स्मोक एलर्जी और सर्दी-जुकाम में फर्क समझिए, इलाज होगा आसान

सर्दियों के आते ही सर्दी-जुकाम की शिकायतें आम हो जाती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका एक बड़ा कारण केवल ठंड नहीं, बल्कि वातावरण में बढ़ता हुआ धुआं (स्मोक) भी है? चाहे वह पराली जलाने से निकला धुआं हो, वाहनों का प्रदूषण, रसोई का धुंआ, पटाखों की चिंगारी या सिगरेट का धुआं, सभी हमारे शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को भ्रमित कर देते हैं।

जब धुएं में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, धूल और टॉक्सिक कण हमारी नाक और गले की संवेदनशील झिल्ली पर असर डालते हैं, तो शरीर इसे एलर्जन समझ कर प्रतिक्रिया देने लगता है, जिससे बिना वायरस के भी सर्दी-जुकाम, छींक, गले में खराश, नाक बंद और आंखों में जलन जैसे लक्षण उभरते हैं। इसी स्थिति को हम ‘स्मोक एलर्जी’ कहते हैं।

जब हमारा इम्यून सिस्टम धुएं को हानिकारक तत्व मानकर ओवररिएक्ट करता है, तो एलर्जिक राइनाइटिस या स्मोक-इंड्यूस्ड कोल्ड जैसी स्थिति बन जाती है। लगातार छींक आना, बहती या बंद नाक, गले में खराश, आंखों में जलन, सिरदर्द, और छाती में जकड़न इसके प्रमुख लक्षण हैं।

धुएं में मौजूद सूक्ष्म कण हमारी नाक के अंदर मौजूद सिलिया (बाल जैसे सुरक्षा तंतु) को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे वायरस और एलर्जन आसानी से शरीर में प्रवेश कर लेते हैं।

इन स्थितियों में कुछ सरल घरेलू उपाय बेहद कारगर हो सकते हैं, जैसे तुलसी-अदरक की चाय, हल्दी वाला दूध, नींबू-शहद का मिश्रण और लहसुन का सेवन। भाप लेना, खासकर यूकेलिप्टस या पुदीना तेल के साथ, नाक खोलने और बैक्टीरिया को मारने में मदद करता है।

आयुर्वेद में भी स्मोक एलर्जी के लिए कई उपाय उपलब्ध हैं, जैसे त्रिकटु चूर्ण, सिंहनाद गुग्गुल और नस्य कर्म (नाक में औषधीय तेल डालना)। अणु तेल की 2 बूंदें नाक में रोज डालने से नासिका मार्ग सुरक्षित रहता है।

गौरतलब है कि भारत में 40 प्रतिशत से अधिक सर्दी-जुकाम के मामले एलर्जी के कारण होते हैं। अगर यह स्थिति लगातार बनी रहती है तो यह अस्थमा या साइनसाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों का रूप भी ले सकती है। इसलिए धुएं से बचाव, प्राकृतिक उपायों का प्रयोग और इम्यून सिस्टम को मजबूत करना ही सबसे बेहतर बचाव है।

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