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आध्‍यात्मिक विचारक ओशो: देश-विदेश में बनाई पहचान, खुशी के साथ जीने का दिखाया रास्‍ता

आज भी जब कोई “खुशी से जीने की कला” की बात करता है तो सबसे पहले ओशो का नाम सामने आता है। 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में जन्मे चंद्रमोहन जैन को दुनिया ओशो रजनीश के नाम से जानती है।

ओशो के लिए कहा जाता है कि वह एक ऐसे आध्यात्मिक विचारक थे, जिसने न परंपरा मानी, न किताबों की बंदिशें स्वीकारीं, सिर्फ जीवन को उत्सव बनाने का संदेश दिया। ओशो ने साफ कहा था, “दिल की सुनिए, यही सबसे बड़ा शिक्षक है।”

ओशो इंटरनेशनल पर उनके विचारों का संकलन मिलता है। ओशो कहते हैं, “मैं किसी को लंबे-चौड़े उपदेश या शब्दों से नहीं समझाना चाहता। मैं तो बस अपने प्यार, अपनी खुशी और चुप्पी से आपको यह एहसास दिलाना चाहता हूं कि आप इस ब्रह्मांड के केंद्र में हैं। हर इंसान केंद्र में है, क्योंकि केंद्र तो एक ही है। बाहर से हम सब अलग-अलग दिखते हैं, जैसे समुद्र में लहरें अलग-अलग लगती हैं, लेकिन गहराई में सब एक ही हैं। हमारा शरीर, नाम, और देश अलग हो सकते हैं, लेकिन भीतर की चेतना एक ही है। जब आप यह महसूस कर लेंगे, तो सारी चिंता, डर और अलगाव खत्म हो जाएगा। बस इतना याद रखें कि आप अकेले नहीं हैं; आप पूरे ब्रह्मांड हैं।”

वह मानते थे कि प्यार का मतलब कब्जा नहीं, पूरी आजादी है। किसी भी रिश्ते के टूटने का सबसे बड़ा कारण एक-दूसरे की आजादी छीनना है। उनका प्रसिद्ध कथन है, “जो व्यक्ति अकेले रहकर भी खुश है, वही सचमुच इंसान है। जिसकी खुशी दूसरों पर निर्भर है, वह गुलाम है।” यही बातें उन्हें आम लोगों से लेकर हॉलीवुड की बड़ी हस्तियों तक का प्रिय बनाती गईं।

ओशो महिलाओं को सृष्टि की सबसे सुंदर रचना मानते थे। वे कहते थे कि स्त्री में जीवन की सारी सुंदरता समाई है। उनके प्रवचनों में प्रेम, ध्यान, मृत्यु, और कुछ भी वर्जित नहीं था। वे हर विषय को खुलकर, बिना डरे, और बिल्कुल नए नजरिए से समझाते थे। यही वजह थी कि एक तरफ लाखों लोग उन्हें भगवान की तरह पूजने लगे, तो दूसरी तरफ कुछ लोग उन्हें विवादास्पद भी मानते थे।

देश में जबलपुर, पुणे से लेकर विदेशों में अमेरिका के ओरेगॉन तक उन्होंने कई आश्रम बनाए। पुणे का ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट आज भी दुनिया भर से लाखों लोगों को आकर्षित करता है। ओशो ने कभी किताबें नहीं लिखीं; वह कहानी, कविता लिखा करते थे। उनके सैकड़ों प्रवचन रिकॉर्ड हुए जो आज उपलब्ध हैं और 50 से अधिक भाषाओं में अनुवादित हैं।

उन्होंने 19 जनवरी 1990 को पुणे में शरीर छोड़ा। उनकी समाधि पर लिखा है, “न कभी जन्मा, न कभी मरा, सिर्फ 11 दिसंबर 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच इस पृथ्वी पर भ्रमण किया।”

आज भी ओशो के विचार से बड़ी संख्या में युवा पीढ़ी प्रेरणा लेती है। वे सिखाते थे कि जीवन को गंभीरता से नहीं, उत्सव की तरह जियो। न डर से जियो, न लालच से, सिर्फ प्रेम और जागरूकता से जियो।

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