विधानसभा में संबद्ध विधायकों का नहीं होगा राजनीतिक नुकसान: बची रहेगी विधायकी, खुलकर दे सकेंगे सत्तारूढ़ दल का साथ

लखनऊ। समाजवादी पार्टी से निष्काषित होने के बाद उप्र. विधानसभा में असबद्ध हुए विधायकों का राजनीतिक नुकसान नहीं होगा। फिलहाल उनकी विधायकी बची रहेगी और तीनों खुलकर सत्तारूढ़ दल भाजपा का साथ भी दे सकेंगे। वहीं, असंबद्ध विधायकों के मंत्री बनने का रास्ता भी अब साफ हो गया है।
दरअसल, वे स्वेच्छा से अगर सपा छोड़ भाजपा में जाते तो दल-बदल कानून के दायरे आकर विधायकी खतरे में पड़ जाती। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा का यह कदम इन विधायकों को नुकसान पहुंचाने के बजाय उल्टा बागियों की मंशा ही पूरी करेगा। असंबद्ध होने के बाद ये विधायक अब खुलकर भाजपा के साथ जा सकते हैं, और अगले डेढ़ साल तक उनकी विधायकी पर कोई खतरा नहीं है।
असंबद्ध घोषित किए जाने का संदेश यह भी है कि सपा से निष्कासन के बाद अब यह कार्यवाही विधायी स्तर पर भी पूरी हो गई है। इन विधायकों के लिए सदन में अलग बैठने की व्यवस्था की जाएगी, जैसा कि निर्दलीय सदस्यों के लिए होता है। अब वे विधानसभा में न तो सपा के कुनबे का हिस्सा रहेंगे और न ही किसी मान्यता प्राप्त दल का, जब तक वे किसी नई पार्टी से औपचारिक रूप से नहीं जुड़ते।
असंबद्ध विधायक का दर्जा प्राप्त करने के बाद मनोज पांडेय, राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह को कई महत्वपूर्ण अधिकार और सुविधाएं मिलेंगी। ये विधायक अब विधानसभा में स्वतंत्र रूप से अपनी राय रख सकेंगे और किसी भी पार्टी के व्हिप से बंधे नहीं होंगे। विधानसभा मंडप में इन्हें सपा के अन्य विधायकों से अलग सीटें आवंटित की जाएंगी, जो इनके स्वतंत्र दर्जे को दर्शाएगा। ये विधायक किसी भी विधेयक या प्रस्ताव पर अपनी इच्छा के अनुसार वोट देने के लिए स्वतंत्र होंगे, बिना किसी पार्टी दबाव के।
सूत्रों के अनुसार, इन विधायकों की भाजपा के साथ नजदीकियां पहले से ही थीं, और अब यह संभावना है कि योगी सरकार इन्हें मंत्रिमंडल में शामिल कर सकती है। वहीं, असंबद्ध विधायक के रूप में इन्हें सभी विधायकों की तरह वेतन, भत्ते, और अन्य सुविधाएं प्राप्त होती रहेंगी।
असंबद्ध घोषित किए गए विधायकों में रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक मनोज कुमार पांडेय, अमेठी से विधायक राकेश प्रताप सिंह और गौरीगंज से विधायक अभय सिंह शामिल हैं।
हालांकि, यह तीनों नेताओं पर कार्रवाई कर से सपा ने अपने अनुशासन को मज़बूत किया है, लेकिन दूसरी ओर भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है। तीनों विधायक अपने-अपने इलाकों में प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। अगर भाजपा इन्हें सक्रिय रूप से अपने संगठन में शामिल करती है और उन्हें जिम्मेदारी देती है, तो यह पार्टी को जमीनी मजबूती देगा, खासकर पूर्वांचल और अवध क्षेत्र में।