व्यवस्था ठीक करने के बजाय जुमलेबाजी में व्यस्त है योगी सरकार : संजय सिंह

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर सामाजिक समरसता और कानून व्यवस्था को संभालनें में नाकाम रहने का आरोप लगाते हुये आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि सरकार स्थिति को संभालने के बजाय जुमलेबाजी में मशगूल है।
आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजय सिंह ने सोमवार को यहां एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि पासी समाज के एक बुज़ुर्ग को मंदिर में पेशाब चटवाने की घटना, उन्नाव में 14 साल के किशोर ऋतिक यादव को पीट-पीट कर मार डालना, एक कुर्मी जाति के ग्राम प्रधान के घर पर हमला और जातिसूचक गालियां देना जैसी अप्रिय स्थितियों में बदलाव लाने के बजाय सरकार नाम बदलने, बुलडोजर चलाने और जुमलेबाजी में व्यस्त है। सरकार रोज़गार और किसान की फसल का दाम जैसे आम आदमी से जुड़े सवालों का जवाब नहीं दे रही है।
उन्होने कहा कि उनकी पार्टी 12 नवंबर से 24 नवंबर तक सरयू से संगम तक एक पदयात्रा निकालेगी, जिसके दो प्रमुख मुद्दों “रोज़गार दो” और “सामाजिक न्याय दो” पर प्रांत अध्यक्षों द्वारा पूरे प्रदेश में बैठकों का आयोजन, पर्चा, पोस्टर, होर्डिंग लगाने और सभाओं की तैयारी ज़ोर-शोर से चल रहा है। जारी किए गए मिस्ड कॉल नंबर पर अब तक करीब तीन हजार मिस्ड कॉल आ चुकी हैं, जिनमें लोग पदयात्रा को किसी न किसी रूप में समर्थन देना चाहते हैं।
सुल्तानपुर के सीएमएस को हटाये जाने पर सवाल उठाते हुये संजय सिंह ने कहा कि सुल्तानपुर के बीरसिंहपुर सरकारी अस्पताल में हफ्ते में सिर्फ एक दिन अल्ट्रासाउंड होता है और सारी दवाएँ बाहर से लिखी जाती हैं। यह उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलता है, जहाँ मोमबत्ती से ऑपरेशन और बैलगाड़ी से प्रसव कराने जैसी घटनाएँ सामने आती हैं।
उन्होने कहा कि आप के मुख्य प्रवक्ता वंशराज दुबे के धरने के दौरान, सीएमएस ने कथित तौर पर कहा कि अगर पुतला फूँकना है तो योगी जी का पुतला फूँकिए। इस बयान के बाद सीएमएस को सस्पेंड कर दिया गया। सांसद ने कहा कि व्यवस्था सुधारने के बजाय सीएमएस को सस्पेंड कर दिया गया। उन्होंने प्रशासन से शीघ्र समाधान करने की मांग की, अन्यथा पार्टी को बड़े स्तर पर आंदोलन करना पड़ेगा।
सिंह ने कहा कि एलआईसी के 33 हजार करोड़ रुपये का निवेश उद्योगपति गौतम अडानी समूह में कर केंद्र सरकार ने लोगों का विश्वास तोड़ा है। यह निवेश ऐसे समय में किया गया जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद अडानी की कंपनी डूबने लगी थी, और निवेशक पैसा निकाल रहे थे।



