बेंगलुरु। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने पूरे मुस्लिम समुदाय को आरक्षण का लाभ देने के कर्नाटक सरकार के फैसले पर चिंता व्यक्त की है। एनसीबीसी के मुताबिक मुस्लिम आबादी के भीतर कुछ जातियों और समुदायों के सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को स्वीकार करते हुए आरक्षण श्रेणी में सभी मुसलमानों को शामिल करना सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को कमजोर करता है।
आयोग का तर्क है कि मुसलमानों को समग्र रूप से पिछड़े वर्गों के अंतर्गत वर्गीकृत करके, मुस्लिम समुदाय के भीतर विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच पिछड़ेपन की विविध आवश्यकताओं तथा स्तरों को नजरअंदाज कर दिया गया है। वर्तमान में कर्नाटक में आरक्षण प्रणाली में श्रेणी-1 के तहत 17 सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियां शामिल हैं, जबकि 19 जातियां श्रेणी ए-2 के अंतर्गत आती हैं।
इसके अतिरिक्त, राज्य में हिंदू-बहुल वर्गों की सूची में मुसलमानों को श्रेणी-2बी में अलग से शामिल किया गया है। आयोग के बयान में संभावित अन्याय पर जोर दिया गया है जो मुस्लिम आबादी के भीतर विभिन्न हाशिए पर मौजूद जातियों और समुदायों पर हो सकता है, विशेष रूप से शैक्षिक तथा सामाजिक रूप से पिछड़े के रूप में पहचाने जाने वाले लोगों पर।
इसने अवसरों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए इन समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पहचानने और संबोधित करने के महत्व पर जोर दिया। इसके अलावा आयोग ने विशेष रूप से स्थानीय निकाय चुनावों के संदर्भ में आरक्षण निर्णय के व्यापक प्रभावों के बारे में आशंका व्यक्त की। स्थानीय निकाय चुनावों में मुसलमानों सहित पिछड़े वर्गों के लिए आवंटित 32 प्रतिशत आरक्षण के साथ, विविध समुदायों के प्रतिनिधित्व पर प्रभाव के बारे में चिंताएं व्यक्त की गई हैं।