इस बार बहुमत के दरवाजे पर दस्तक: चौथे चरण की 96 सीटों में दबदबा, स्विंग और कांटे के संघर्ष वाला मिजाज ज्यादा
13 मई को चौथे चरण में 96 सीटों पर मतदान के साथ 379 लोकसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हो जाएगा, इसी के साथ बहुमत का दरवाजा भी खुल जाएगा और यह तय होगा कि कौन भीतर प्रवेश करेगा। शायद यही वजह है कि यह चरण दोनों प्रमुख गठबंधनों एनडीए और इंडिया के लिए आसान नहीं है। 2019 के चुनाव परिणाम के लिहाज से कांग्रेस के मुकाबले इस चरण में भी भाजपा की बढ़त तो साफ दिखती है।
लेकिन इस बार असली खिलाड़ी क्षेत्रीय दल हैं, जो किसी के लिए भी बहुमत का दरवाजा खोल सकते हैं या पास फटकने से रोक सकते हैं। भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए गठबंधन तीन चरणों के चुनाव में 200 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रहा है, तो इंडिया गठबंधन के नेताओं का कहना है कि सभी 543 सीटों के चुनाव के बाद भी भाजपा की 200 सीटें नहीं आ रही हैं।
अब सत्ता पक्ष और विपक्ष के इन दावों की पड़ताल तो चार जून को परिणाम आने पर होगी, पर चौथे चरण के रण की बात करें तो भाजपा ने इस चरण की 96 में से 42 सीटों पर 2019 में जीत हासिल की थी। पार्टी इस बार आंकड़ा 60 से ऊपर जाने की उम्मीद लगा रही है।
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में राजनीतिक दलों के गढ़ वाली सीटों और स्विंग सीटों के परिणाम पर सारा दारोमदार टिका है। यही सीटें मुकाबला दिलचस्प बना सकती हैं, क्योंकि इन सीटों में जीत-हार को लेकर फेरबदल होने की संभावनाएं ज्यादा हैं। इस चरण में उन सीटों की संख्या ज्यादा हैं, जहां 2009 से किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा है। इसके अलावा इस बार पिछली बार से परिस्थतियां भी बदली हुई हैं।
आंध्र प्रदेश में कांटे की टक्कर मानी जा रही है, तो तेलंगाना में बीआरएस के बजाय अब कांग्रेस काबिज है। 2019 के चुनाव में भाजपा इस चरण की 96 में से 89 सीटों पर चुनाव लड़कर 43 सीटें जीतने में सफल रही थी। भाजपा ने जीत वाली 43 सीटों पर 40 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे। जबकि इन 43 सीटों पर कांग्रेस को 10 फीसदी से भी कम वोट मिले थे।
2014 की मोदी लहर में भाजपा ने इस चरण में 38 सीटें जीती थीं। हालांकि 2009 में भाजपा के हाथ सिर्फ 10 सीटें ही आयी थीं। इसके मुकाबले कांग्रेस 2019 में 85 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ 6 सीटें ही जीत सकी थी। 2014 के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी दयनीय था। पार्टी केवल तीन सीटें ही जीत पायी थी।
जबकि 2009 में कांग्रेस ने धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए 50 लोकसभा सीटों पर जीत का परचम फहराया था। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी भी इन सीटों पर तेजी से आगे बढ़ी है। पार्टी ने 2014 में 9 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 2019 में उसने 22 सीटें जीत ली थीं।
32 सीटें पाला बदल या कांटे के संघर्ष वाली, किसी भी तरफ झुक सकतीं
चौथे चरण की 96 लोकसभा सीटों में 32 सीटें परिणाम में बड़ा असर डाल सकती हैं। इनमें 21 सीटें ऐसी हैं, जो लगभग हर चुनाव में इधर-उधर होती रहती हैं। इसके अलावा 11 ऐसी सीटे हैं, जिन पर 2019 में जीत-हार का अंतर एक फीसदी से भी कम था। ऐसे में यही 32 लोकसभा सीटें इस चरण में असली खिलाड़ी हैं, जो किसी के साथ भी जाने पर उसका पलड़ा भारी कर सकती हैं।
पिछली बार लगभग आधी सीटों पर हुआ था कड़ा मुकाबला
2019 में चौथे चरण की लगभग आधी सीटों पर कांटे की टक्कर देखने को मिली थी। कोई भी दल ऐसे नहीं था, जिसने एकतरफा यानी 40 फीसदी से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीता हो। झारखंड की पलामू, महाराष्ट्र की जलगांव और जम्मू-कश्मीर की श्रीनगर ही ऐसी सीटें थीं, जहां जीत का अंतर 40 फीसदी के आसपास था। भाजपा ने पलामू में 37.80% और जलगांव में 39.55% वोटों के अंतर से चुनाव जीता था, जबकि, श्रीनगर सीट पर फारूक अब्दुल्ला ने 37.50% मतों के अंतर से जीत हासिल की थी।
11 सीटों पर एक फीसदी से कम वोटों से हुई थी जीत-हार
2019 के लोकसभा चुनाव में चौथे चरण की 11 सीटों पर एक प्रतिशत से कम वोट के अंतर से जीत-हार का फैसला हुआ था। तेलुगु देशम पार्टी ने आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा सीट 0.7%, श्रीकाकुलम 0.6% और गुंटूर सीट 0.4% मतों के अंतर से जीती थी। कांग्रेस ने तेलंगाना की मलकाजगिरी में 0.7 % और भोंगिर में 0.4% के अंतर से चुनाव जीता था। इसी तरह विशाखापट्टनम, खूंटी, औरंगाबाद, कोरापुट, जहिराबाद और बर्धमान में भी एक प्रतिशत मतों के अंतर वाला मुकाबला ही सामने आया था।