Trump की टैरिफ लिस्ट में कहीं आ न जाए भारत का भी नाम, सेंसेक्स 350 अंक तो निफ्टी में 100 अंक फिसला, बाजार में गिरावट के क्या हैं 4 बड़े कारण?

हफ्ते के चौथे कारोबारी दिन आज यानी गुरुवार, 10 जुलाई को सेंसेक्स 350 अंक गिरकर 83,200 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। वहीं निफ्टी में 100 अंक से ज्यादा की गिरावट है, ये 25,360 पर कारोबार कर रहा है। हफ्ते के तीसरे कारोबारी दिन 9 जुलाई को सेंसेक्स 176 अंक गिरकर 83,536 के स्तर पर बंद हुआ। निफ्टी में भी 46 अंक की गिरावट है, ये 25,476 पर बंद हुआ। एशियाई बाजारों में हांगकांग का हैंगसेंग, दक्षिण कोरिया का कॉस्पी और चीन का शंघाई एसएसई कम्पोजिट फायदे में रहे जबकि जापान का निक्की 225 नुकसान में रहा। अमेरिकी बाजार बीते दिनों सकारात्मक रुख के साथ बंद हुए थे। अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड 0.06 प्रतिशत की गिरावट के साथ 70.15 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर रहा। शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) बुधवार को लिवाल रहे थे और उन्होंने शुद्ध रूप से 77 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।
बाजार में गिरावट के प्रमुख फैक्टर
1) आय सत्र की शुरुआत: भारत की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर निर्यातक कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) आज वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही के आय सत्र की शुरुआत करने वाली है। आईटी क्षेत्र वर्तमान में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें कमजोर वैश्विक मांग, व्यापार तनाव को लेकर बढ़ती चिंताएँ और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रभाव को लेकर अनिश्चितता शामिल है। सत्र के दौरान निफ्टी आईटी सूचकांक में 1 प्रतिशत तक की गिरावट आई।
2) व्यापार समझौते को लेकर चिंताएं: भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता को लेकर अनिश्चितता के बीच निवेशक सतर्क हैं। हालाँकि भारत का नाम अभी तक ट्रम्प प्रशासन द्वारा नए टैरिफ उपायों का सामना करने वाले देशों की सूची में नहीं है, लेकिन भविष्य में कार्रवाई की संभावना ने धारणा को नियंत्रित रखा।
3) कमज़ोर वैश्विक संकेत: एशियाई शेयरों में मिला-जुला कारोबार हुआ, जापान का निक्केई 225 सूचकांक 1 प्रतिशत तक गिर गया। अमेरिकी शेयर वायदा भी लाल निशान में रहे, जो वॉल स्ट्रीट की कमज़ोर शुरुआत का संकेत था।
4) फार्मा शेयरों पर दबाव: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दवा उत्पादों पर संभावित 200 प्रतिशत टैरिफ लगाने के संकेत के बाद, जिसे एक साल की मोहलत के बाद लागू किया जाएगा, फार्मा शेयरों पर भी दबाव देखा गया। इस कदम से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ बाधित हो सकती हैं और भारत, जो अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का एक प्रमुख निर्यातक है, पर गहरा असर पड़ सकता है।