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सब्र की इंतिहा हुसैन ए पाक हैं – सब्र की मेराज का नाम शहीद ए आजम इमाम हुसैन है।

सब्र की मेराज का नाम इमाम हुसैन है - मस्जिदों में जारी है ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ की महफिल। कुणाल जायसवाल वसीम अख्तर ख्वाजा एक्सप्रेस दैनिक समाचार पत्र पोर्टल शोहरत गढ़ सिद्धार्थ नगर। मुहर्रम के मौके पर मस्जिदों, घरों व इमामबाड़ों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिलों का दौर जारी रहा। फातिहा ख्वानी हुई। ‘शोह-दाए-कर्बला’ का जिक्र सुनकर सबकी आंखें भर आईं। जामा मस्जिद शोहरत गढ़ के इमाम कारी रजीआल्लाह ने बताया कि इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ यजीद की कई गुना बड़ी फौज के साथ किसी मंसब, तख्तोताज, बादशाहत, किसी इलाके को कब्जाने अथवा धन-दौलत के लिए जंग नहीं की बल्कि पैगंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन-ए-इस्लाम व इंसानियत को बचाने के लिए जंग की थी। यज़ीदियत हर दौर में हुसैनियत से हारती रहेगी क्योंकि हक़ से कभी बातिल जीत नहीं सकता। जब परेशानी आए तो सब्र से काम लेना है। वर्तमान दौर में हजरत हसन-हुसैन की शहादत को याद कर स्वच्छ समाज निर्माण करने की जरूरत है। मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने कहा कि इमाम हुसैन व उनके साथियों ने यजीद फौज की बर्बता के सामने इस्लाम के अलम को झुकने नहीं दिया। वह अपने परिवार समेत जालिमों के हाथों शहीद हो गये, लेकिन दुनिया को संदेश दे गए कि सही कदम उठाने वाला शहीद होकर भी हमेशा ज़िंदा रहता है। सब्र की मेराज का नाम इमाम हुसैन है। शोहरत गढ़ जामा मस्जिद में मौलाना अकबर अली ने कहा कि इमाम हुसैन अपने इल्म, अख्लाक, बहादुरी, तकवा, परहेजगारी, इबादत और किरदार की वजह से बहुत ज्यादा मकबूल हैं। बुराई का नाश करने के लिए पैग़ंबरे इस्लाम के नवासे हज़रत फातिमा के जिगर के टुकड़े अली के लख्ते ज़िगर शहीद ए आजम इमाम हुसैन रजीआल्लाह व उनके परिवार व साथियों सहित कुल 72 लोगों ने शहादत दी। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो शांति की दुआ मांगी गई। मजलिस में सैकड़ों मुसलमान शामिल रहे।

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