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गरीबी उन्मूलन का सहकार माइक्रोफाइनैन्स मनी लेन्डर्स या सूदखोरों से बचाने का एक माध्यम

सुधीर सिन्हा, सीईओ उपमा

गरीबी के कारणों के अन्वेषण मे एक बात जो प्रमुखता से उभर कर आती है वो है रोजगार की कमी। यह समस्या शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों मे अधिक है। ग्रामीण क्षेत्र मे रोज़गार की कमी के साथ साथ किसी भी तरह कि संपत्ति या खेती किसानी की जमीन का न होना भी एक समस्या है। इन सब समस्यायों के मद्देनजर माइक्रोफाइनैन्स एक ऐसा ग्रामीणों को ऋण के माध्यम से रोज़गार उपलब्ध करने का माध्यम है जिसमे व्यक्ति को किसी तरह की कागजी कार्यवाही या सुरक्षा के बिना उपलब्ध करता है।

माइक्रोफाइनैन्स गाँव या पिछड़े क्षेत्रों मे रहने वाले गरीब व्यक्तियों को रोज़गार परक छोटे छोटे लोन घर पर जा कर बिना किसी गारंटी या बंधक के मोहल्ले या निकट मे रह रही अन्य महिलाओं के समूह बनाकर ऋण देते है। इस लोन कि वसूली साप्ताहिक, पाक्षिक या माहवारी किश्तों मे समूह की बैठक मे की जाती है। आइए समझते है माइक्रोफाइनैन्स लोन क्या होता है तथा यह कैसे काम करता है।

माइक्रोफाइनैन्स कॉम्पनी कौन है; माइक्रोफाइनैन्स कॉम्पनिया भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा “गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी”_ माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशन (NBFC_MFI) रेजिस्टर्ड कॉम्पनिया होती है जिनके परिचालन पर भारतीय रिजर्व बैंक पैनी नजर रखता है। NBFC –MFI के अंतर्गत पंजीकरण हेतु 10 करोड़ रुपए के नेट स्वयं की निधि (औनेड फंड) होने चाहिए इसके तहत कुल ऐसेट का 75% क्वालिफाईंग ऐसेट होना चाहिए।

माइक्रोफाइनैन्स लोन का लक्ष्य समूह; गाँव या शहरी क्षेत्र के पिछड़े क्षेत्रों मे रहने वाले वो व्यक्ति या परिवार जो बैंक जा केर लोन नहीं प्राप्त कर पाता है माइक्रो फाइनेंस उनके लिए यह सुविधा उनके घर पर उपलब्ध कराता है। बैंक से लोन न प्राप्त कर पाने के बहुत से कारण हो सकते है जैसे लोन की राशि कम होना, बैंक के पास सुरक्षा हेतु बंधक का न होना, बार बार बैंक के चक्कर लगाना इत्यादि। ऐसे लोग जो बैंक से कर्ज नहीं प्राप्त कर पाते है वो मनी लेन्डर्स या सूदखोरों के पास जा कर अपना पूरा जीवन लोन के ब्याज भरने मे ही समाप्त कर देते है। माइक्रोफाइनैन्स मनी लेन्डर्स या सूदखोरों से बचाने का एक माध्यम है।

माइक्रोफाइनैन्स लोन मुख्यतः महिलाओं को ही दिया जाता है; कई तरह के अध्ययन से यह बात उभर कर आई है कि महिलाएं एक कुशल वित्तीय प्रबंधक होती है। सामान्यतः एक गरीब व्यक्ति अर्थात पुरुष अपनी आय का तकरीबन 47% नशे मे खर्च कर देता है। इसके ठीक उलट एक महिला सबसे पहले परिवार के लालन पोषण बच्चों की पढाई लिखाई उसके बाद अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बरकरार रखते हुए घर के खर्च चलाती है। इसी के मद्देनजर माइक्रोफाइनैन्स कॉम्पनियों ने एक सोचा समझा निर्णय लिया कि हमारी प्रमुख ग्राहक महिला होगी जिसमे पुरुष सह आवेदक हो सकता है।

यह व्यवस्था सिर्फ भारत ही नहीं करीब करीब सभी दक्षिण एशिया के देशों जैसे पाकिस्तान बांग्ला देश मे भी अपनाई जाती है। माइक्रोफाइनैन्स लोन घर पर जा कर समूह मे दिया जाता है; जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि माइक्रोफाइनैन्स लोन मे कोई बंधक सिक्युरिटी या गारंटी नहीं ली जाती है। ऐसे मे माइक्रोफाइनैन्स के अधिकारी गाँव मे जाकर महिला के निवास स्थान की जांच करके उसी इलाके मे रहने वाली कम से कम 8 महिलाओं के समूह बना कर लोन देते है। इसका उद्देश्य सिर्फ इतना है कि यदि कोई महिला किसी कारण वश अपनी ऋण कि किश्त नहीं चुका पाती है तो उस समूह कि अन्य महिलायें मिल कर किश्त का भुगतान कर देती है तथा बाद मे वो उनसे वसूल लेती है। इस लोन देने कि पद्धती को संयुक्त देयता समूह अवधारणा (Joint Liability Group Concept) कहा जाता है।

माइक्रोफाइनैन्स लोन की पात्रता; भारतीय रिजर्व बैंक के अद्यतन दिशा निर्देशों के अनुसार ऐसे सभी परिवार जिनकी वार्षिक आय रु.3.00 लाख या उससे कम है वो सभी परिवार माइक्रो फाइनेंस ऋण लेने के पात्र है। इन्ही दिशा निर्देशों मे यह भी स्पष्ट किया गया है कि दिए जाने वाले लोन की किश्त उसकी वार्षिक आय के आधे से अधिक नहीं हो सकती है अर्थात परिवार के नाम से जितने भी लोन है उन सभी लोन की कुल किश्त परिवार कि वार्षिक आय के आधे से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस विषय मे परिवार की परिभाषा मे पति पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे आते है।

माइक्रोफाइनैन्स लोन वितरण का स्वरूप; माइक्रोफाइनैन्स कंपनी के अधिकारी गाँव मे या परिलक्षित क्षेत्र मे जा कर संभावित परिवार का चयन करते है। क्षेत्र मे कम से कम 8 महिलाओं का चयन किया जाता है उनके केवाईसी डाक्यूमेंट्स जैसे राशन कार्ड, वोटर आइडी कार्ड इत्यादि की जांच करते है। उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए डाक्यूमेंट्स के आधार पर क्रेडिट स्कोर भी चेक करते है। सब कुछ उपयुक्त पाए जाने पर आवेदक महिला को दिए जाने वाले ऋण, उस पर प्रभार किए जाने वाले ब्याज के दर ऋण की समयावधि तथा ऋण की किश्त के बारे मे पूरी जानकारी दी जाती है। कम से कम दो बार लोन ऑफिसर महिला को ऋण किश्त उस पर प्रभारित ब्याज दर ऋण की किश्त तथा समयावधि के बारे मे पूरी जानकारी देता है। उसके उपरांत एक वरिष्ठ अधिकारी दी गई जानकारी के बारे मे महिला का टेस्ट लेता है कि उसे दिए जाने वाले लोन के संबंध मे पूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई है या नहीं। इसे ग्रुप रिकग्निशन टेस्ट Group Recognition Test या GRT कहते है।

ग्रुप के द्वारा यह टेस्ट पास करने के उपरांत ही ऋण वितरण की कार्यवाही सम्पन्न की जाती है। सामान्यतः ऋण राशि महिला आवेदक के बैंक खाते मे स्थानांतरित की जाती है। ऋण दिए जाते समय महिला को एक लोन कार्ड भी दिया जाता है जिसमे लोन से संबंधित समस्त विवरण जैसे दिए गए लोन की रकम, ब्याज कि दर लोन की समय सीमा दिए जाने वाली किश्त कि रकम तथा सहित संख्या समस्त विवरण दर्ज होता है। इस कार्ड मे शिकायत हेतु कंपनी तथा भारतीय रिजर्व बैंक का टोल फ्री नंबर भी निर्दिष्ट होता है।

ऋण की वसूली; जैसा कि पहले बाते जा चुका है माइक्रोफाइनैन्स लोन समूह बना केर दिया जाता है। ऋण कि वसूली इसी समूह की बैठक आयोजित करके की जाती है। सामान्यतः समूह की बैठक किसी महिला के आवास पर आयोजित की जाती है। समूह की बैठक का स्थान दिन तथा समय पहले से नियत होता है। सभी महिलाएं समूह बैठक मे भाग लेकर अपनी अपनी किश्तें देती है। आजकल डिजिटल पेमेंट के युग मे कुछ महिलाएं मोबाईल के माध्यम से भी अपनी किश्तें देती है परंतु बैठक मे भाग लेना सभी के लिए अनिवार्य होता है।

इस तरह से पाएंगे कि माइक्रोफाइनैन्स लोन भारत सरकार के गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयासों मे अपनी महती भूमिका अदा कर रहा है। माइक्रोफाइनैन्स कॉम्पनियों के इस प्रयास मे सिड़बी तथा नाबार्ड एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे है। भारतीय रिजर्व बैंक भी समय समय पर दिशा निर्देश व अनुश्रवन के द्वारा इन कॉम्पनियों पर सूक्ष्म नजर रखता है। माइक्रोफाइनैन्स के द्वारा करोड़ों परिवार गरीबी कि रेखा से ऊपर आ चुके है। दिसम्बर,2024 तक तकरीबन 8.4 करोड़ परिवारों को 14. 60 करोड़ लोन अकाउंट के माध्यम से रु 3,91,516.00 करोड़ रुपए वितरित किया गए है। जिसमे प्रति महिला लोन कि रकम रु.53,311 आती है।

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