उत्तर प्रदेशलखनऊ

विवादों से घिरे स्वामी प्रसाद ने राष्ट्रीय महासचिव पद से दिया इस्तीफा, अखिलेश यादव को लिखा पत्र

लखनऊ। रामचरित मानस से लेकर सनातन धर्म तक पर विवादित बयानबाजी से विवादों में घिरे रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है। उनका कहना है कि वह ऐसे महत्वहीन पद पर नहीं बने रह सकते जिसे पार्टी में ही भेदभावपूर्ण से देखा जा रहा है। स्वार्मी प्रसाद के इस फैसले से कयास लगाया जा रहा है कि एक बार फिर वो पाला बदल सकते हैं।

भाजपा छोड़कर 2022 विधानसभा चुनाव में सपा का दामन थामने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से यूपी की राजनीति गरमा गई है। कुछ दिनों पहले उनके बयानों को मनोज पाण्डेय सहित कई सपा विधायकों और पदाधिकारियों ने तीखी टिप्पणी की थी। पार्टी के अंदर खाने उनका विरोध भी तेज हो गया है। पदाधिकारियों और विधायकों ने सार्वजनिक मंचों से कहना शुरु कर दिया कि स्वामी प्रसाद का कोई भी बयान पार्टी का न होकर उनका निजी बयान है। अब पदाधिकारियों के बकव्यों को स्वामी प्रसाद पद से इस्तीफे का आधार बना रहे हैं।

अखिलेश के नाम लिखा भावुक पत्र, बोले MLC बनाने के लिए धन्यवाद

स्वामी प्रसाद ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव को भेजे पत्र में लिखा है कि जबसे में समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हुआ, लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की। सपा में शामिल होने के दिन नारा दिया था “पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है”। सामाजिक परिवर्तन के महानायक काशीराम साहब का ‘भी वही था नारा “85 बनाम 15 का”। विधानसभा चुनाव में सैकड़ो प्रत्याशीयों का पर्चा व सिंबल दाखिल होने के बाद अचानक प्रत्याशीयों के बदलने के बावजूद भी पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहे, उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां मात्र 45 विधायक थे वहीं पर विधानसभा चुनाव 2022 के बाद यह संख्या 110 विधायकों की हो गई थी। बिना किसी मांग के आपने मुझे विधान परिषद् में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया, इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

सुझाव पर आश्वासन के बाद भी पार्टी ने नहीं उठाया कदम

मौर्या ने लिखा है कि पार्टी को ठोस जनाधार देने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में सुझाव रखा कि जातिवार जनगणना कराने, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ो के आरक्षण को बचाने, बेरोजगारी व बढ़ी हुई महंगाई, किसानों की समस्याओं व लाभकारी मूल्य दिलाने, लोकतंत्र व संविधान को बचाने, देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी हाथ में बेचे जाने के विरोध में प्रदेशव्यापी भ्रमण कार्यक्रम के लिए रथ यात्रा निकालने का प्रस्ताव रखा था। जिसपर आपने सहमति देते हुए कहा था “होली के बाद इस यात्रा को निकाला जायेगा” आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया। नेतृत्व की मंशा के अनुरूप मैंने पुनः कहना उचित नहीं समझा।

विवादित बयानों को बताया जानधार बढ़ाने का प्रयास

स्वामी के पत्र के मुताबिक उन्होंने पार्टी का जनाधार बढ़ाने का क्रम अपने तौर-तरीके से जारी रखा। आदिवासियों, दलितों व पिछड़ो को जो जाने-अनजाने भाजपा के मकड़जाल में फंसकर भाजपा मय हो गए थे उनके सम्मान व स्वाभिमान को जगाकर व सावधान कर वापस लाने की कोशिश की। इसपर पार्टी के ही कुछ छुटभईये व कुछ बड़े नेताओ ने “मौर्य जी का निजी बयान है” कहकर इस धार को कुंठित करने की कोशिश की। भारतीय संविधान के निर्देश के क्रम में लोगों को वैज्ञानिक सोच के साथ खड़ा कर लोगों को सपा से जोड़ने की अभियान में लगा रहा हूं।

सिर कलम करने तक की मिल रही धमकियां

इसी अभियान के दौरान, मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने आदि लगभग दो दर्जन धमकियाँ व हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख रकम देने की सुपारी भी दी गई। अनेको बार जानलेवा हमले भी हुए जिसमें बाल-बाल बचे। सत्ताधारियों द्वारा मेरे खिलाफ अनेको एफआईआर भी दर्ज कराई गई लेकिन अपनी सुरक्षा की बिना चिंता किये हुए अपने अभियान में निरंतर चलता रहा।

सबके बोल पार्टी के मेरी बातें निजी कैसे

मौर्या के मुताबिक पार्टी के वरिष्ठतम नेता चुप रहने के बजाय मौर्य जी का निजी बयान कह करके कार्यकर्ताओं के हौसले को तोड़ने की कोशिश कर रहे। समझ नहीं पाया कि एक राष्ट्रीय महासचिव मैं हूँ, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है। दूासरी ओर पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव व नेता ऐसे भी हैं जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है। एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है।

दूसरी हैरानी यह है कि मेरे इस प्रयास से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ो का रुझान समाजवादी पार्टी के तरफ बढ़ा है। बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास व वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो मैं समझता हूँ ऐसे भेदभाव पूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से में त्यागपत्र दे रहा हूं।

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