ओपिनियन

अमर बलिदानी वीर हकीकत राय

मृत्युंजय दीक्षित


भारत की महान धरती ने एक से बढ़कर एक वीर सपूतों को जन्म दिया है जिन्होंने अपनी मातृभूमि व हिंदू धर्म की रक्षा के लिये प्राणों की आहुति देने में भी रंचमात्र चिंता नहीं की । इनमें सपोतों में कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने कोमल बाल्यावस्था में ही प्राणों का बलिदान देकर धर्म की रक्षा की इन्हीं वीर बालकों में से एक है वीर हकीकत राय जिसका बलिदान बसंत पंचमी के दिन हुआ था।

वीर बालक हकीकत राय का जन्म अविभाजित पंजाब के सियालकोट नगर में सन 1719 में एक प्रसिद्ध व्यापारी भगमल के घर पर जन्म हुआ था। बालक हकीकत ने बचपन से ही इतिहास व संस्कृत आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

उनके पिता अपने पुत्र को पढ़ा लिखा कर सरकारी अधिकारी बनाना चाहते थे इसलिये उन्होंने हकीकत को उर्दू मदरसे में पढ़ने के लिये भेजा साथ ही फारसी सीखने के उद्देश्य से एक मौलवी के पास भेजा। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण बालक ने मौलवी का प्रेम प्राप्त कर लिया। मौलवी उसकी ओर अधिक ध्यान देकर पढ़ाते थे यह बात मुस्लिम विद्यार्थियों को पसंद नहीं आ रही थी।

उस समय भारत का शासक मुहम्मदशाह रंगीला था जो बहुत ही कमजोर प्रशासक था जिस कारण चारों ओर अराजकता का वातावरण था और हिंदू समाज पूरी तरह से असुरक्षित था। मुगल गुंडे हिंदुओं की बहिन- बेटियों को घर के अंदर से अपहरण कर ले जाते थे तथा उनका घर परिवार तथा खेती, किसानी सबकुछ लूटपाट कर ध्वस्त कर रहे थे। हिंदुओं के मंदिरों व धार्मिक स्थलों को तहस नहस कर रहे थे।

इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर मदरसे के मुस्लिम छात्रों ने हकीकत को मजा चखाने की सोची। मुस्लिम छात्र अब प्रतिदिन किसी न किसी बात पर हकीकत को परेशान करने लगे। एक दिन वह अवकाश होने के कारण मदरसे से घर वापस आ रहे थे कि तभी रशीद नाम से एक छात्र ने हकीकत को आवाज देकर बुलाया और कहा कि ,”तुमने, मोलवी साहब से मेरी शिकायत क्यों की ?

अनवर बोला – मेरे जुंआ खेलने पर भी शिकायत तुमने की है। जब हकीकत कुछ नहीं बोला तब दोनो उसके पीछे पड़ गये और कहने लग गये कि, ”तुमने हम लोगों की मौलवी से शिकायत की इसीलिये अब हम तुमसे बदला लेंगे।“

तब हकीकत बोला – ”कैसा बदला लोगे ? ” वे बोले – “अरे, तू हमें नहीं जानता हम इस्लाम के बंदे हैं। तुम्हें जान से मार देंगे, “तब हकीकत ने पूरी मजबूती से कहा कि, “तुम सब चोरी करते हो जुआ खेलते हो और ऊपर से जान से मारने की धमकी भी देते हो।” इसके बाद अनवर और रशीद हकीकत पर टूट पड़े। तभी मौलवी साहब आ गये और उन्होंने सभी को डांटते हुए अलग किया और घर जाने को कहा।

कई दिनों के बाद अनवर और रशीद ने अपना खेल फिर शुरू कर दिया वे हर हालत में हकीकत को नीचा दिखाना चाहते थे। एक दिन कबड्डी के बहाने अनवर और रशीद हकीकत को बुलाने के लिये चुनौती देने लगे। दोनों पक्षों के बीच देवी देवताओं को लेकर तीखी नोकझोक व अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग होने लगा। रशीद ने क्रोध में आकर कहा कि इस काफिर को अब सजा मिलनी ही चाहिये।

हम इस्लाम का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। इन तीनों के तेज वाद- विवाद सुनकर मुहल्ले के बच्चे भी वहां पहुंच गये। मौलवी साहब अपे घर से ही सारे विवाद को देख व सुन रहे थे। उन्हांने वहां पहुंचकर बच्चों से पूछा कि- अरे, हकीकत को घेर कर क्यों खड़े हो ?“

तब अनवर ने कहा इसने हमारी रसमल जादी को गाली दी है ? मौलवी ने हकीकत से पूछा तो उसने कहा कि पहले अनवर ने मां भवानी को गाली दी थी। तब मौलवी ने हकीकत से कहा कि, “क्यों, मौत को दावत दे रहो हो इन लोगों से माफी मांग लो।” तब हकीकत ने पूरी मजबूती से कहा कि, ”मैं क्यों माफी मांगू मैंने कोई गुनाह नहीं किया ?” तब मौलवी ने अन्य छात्रों से कहा कि इसे बांधो और काजी साहब के पास ले चलो। वहीं इस काफिर को इसके गुनाह की सजा मिलेगी।

मौलवी साहब भी बहुत घबरा गये थे क्योंकि उनके ऊपर वपारी भगमल की बहुत कृपा थी तथा उन्हें सोने का सिक्का भी उन्हीं से मिलता था। जिसके कारण वह उसके घर की ओर चले गये और घर मे काफी घबराहट के साथ पूरी घटना की जानकारी दी। तब हकीकत के पिता भागमल तुरंत काजी के घर गये।

मुसलमान लड़के काजी के घर पहुंचे और वहां पर उनका दरबार लग गया । मुस्लिम लड़कों ने अपनी सारी बात मिर्च मसाला लगाकर काजी साहब को बताकर न्याय मांगा जिससे काजी साहब को गुस्सा आ गया और उन्होंने हकीकत से गुस्से में पूछा कि, तुमने रसूलजादी को गाली देकर इस्लाम का अपमान क्यों किया ? तब हकीकत ने कहा कि, यह मेरी गलती नहीं है काजी साहब पहले इन्होंने हमारी मां भवानी को गाली दी और देवी- देवताओं का अपमान किया था। हकीकत ने कहा कि मैं अपने देवी देवताओं का अपमान नहीं सहन कर सकता।

तब काजी ने कहा कि – क्या भगवान- भगवान की रट लगा रखी है । तुम्हारा पत्थर का भगवान हमारे पवित्र इस्लाम की बराबरी कर सकता है। पत्थर के टुकड़े से खुदा का क्या मुकाबला ? रसूलजादी को गाली देने का परिणाम जानते हो? इसके बाद काजी और हकीकत के बीच जोरदार बहस होने लग गयी।

अंत में हकीकत ने कहा कि आप इस्लाम के न्याय की आड़ में अत्याचार करते होऔर पीड़ितों का गला घोंटते हो। खुद तो आप नीति सिंद्धांतों पर चलते नहीं और हम हिंदुओं को काफिर कहते हो।“ तब काजी ने कहा कि, ‘तुम्हारी मासूम उम्र देखकर हम तुम्हें क्षमा कर देते पर हमारे साथ अनुचित बातें कर अपनी मौत को दावत दी है।‘

वीर हकीकत ने उत्तर दिया कि आप जैसे लोगों की दया पर जीने से अपेक्षा मैं अपने धर्म के लिये मरना पसंद करता हूं। तब फिर काजी और हकीकत के बीच वाद विवाद शुरू हो गया जो इतिहास के पन्ने में दर्ज हो गया। काजी ने कहा कि तुम अपने पूरे परिवार के साथ इस्लाम कबूल कर लो या फिर मरने के लिये तैयार हो जाओ। पिता भगमल तो तुरंत अब अपने बेटे की जान बचाने के लिये इस्लाम स्वीकार करने को तैयार हो गये लेकिन वीर हककीत पूरे साहस के साथ जुटा रहा।

बाद में हकीकत को लाहौर के हाकिम शाह नाजिम के दरबार में पेश किया गया। पिता भागमल भी अपने बेटे को बचाने के लिये हाकिम के दरबार पहुंच गये। उन्होंने हाकिम साहब को पूरी बात बतायी और काजी भी वहां पहुंच गये। काजी ने हाकिम से कहा कि हकीकत ने इस्लाम का अपमान किया है। वहां पर बड़ी देर तक वाद वाद- विवाद होता रहा और अंत में यही कहा गया कि जिंदा रहना चाहते हो तो इस्लाम स्वीकार कर लो।
अन्ततः इस्लाम न स्वीकार करने के कारण बसंत पंचमी के दिन हकीकत राय का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। वीर हकीकत का यह बलिदान इतिहास के पन्नों में अमर हो गया है।

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