ईद के मेले से हामिद अब चिमटा नहीं ख़रीदता
सैयद फसीउल्लाह निज़ामी “रुमी”
ईद का त्योहार मुस्लिम धर्म का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है और इस दिन सारे लोग खुशी में डूबकर प्यार का पैग़ाम देते हैं। यह त्योहार 30 दिन रोज़े रखने के उपरांत तोहफ़े के रूप में ऊपर वाले कि तरफ से मिलता है। हर घर से खुशी टपकती है और एक अलग ही खुशबू का एहसास होता है। घर घर मे सेवइयां बनती हैं वो भी किस्म- किस्म की जैसे पतली पीने वाली, किवामी व लच्छेदार। लोग आते हैं और शौक़ से इसे मोहब्बत बांटते हुए खाते हैं।
इस दिन बड़े व बच्चे सब नहा धोकर नये नये कपड़े पहन कर कतारबद्ध हो ईदगाह की की तरफ़ नमाज़ के लिए चल पड़ते हैं, और ईदगाह को जाने वाला रास्ता इत्र की खुशबुओं से महक उठता है। रास्ते मे बहुत सारे ग़रीब फ़क़ीर रास्ते के किनारे मिलते हैं जिन्हें वह कुछ न कुछ दान करता जाता है। नमाज़ के पहले हर एक व्यक्ति अपनी ज़कात व फ़ितरा अदा कर देता है अर्थात ग़रीबों में अपनी कमाई रक़म का एक निर्धारित अंश बाँट देता है।
हमने बचपन में छोटी कक्षाओं में प्रेमचन्द की कहानी ‘ईदगाह’ में पढ़ा था कि हामिद ईदगाह के मेले से अपनी दादी के लिए चिमटा लाया था जबकि सारे बच्चों ने खिलौना खरीदा था। हामिद की दादी का हाथ चुल्हे पर रोटी बनाते वक्त अक्सर जल जाता था जिसे हामिद ने देखा था और फिर ईद के मेले से छोटे से हामिद ने अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदा था ताकि उसकी दादी की उंगलियां अब रोटियां बनाते वक्त तवे पर न जलें।
अब आज इस नये ज़माने में न हामिद को अपनी दादी की जलती उंगलियों की चिंता है न ही चिमटा खरीदने की ललक। आज के बदलते परिवेश में त्योहारों का रंग फीका पड़ता जा रहा क्योंकि कुछ महंगाई का असर है और किसी के पास इतना वक़्त ही कहाँ की वह मेले में समय दे। आज मोबाइल के युग मे समय के साथ साथ परिवेश भी बदल चुका है।
पहले ईद की ललक ऐसी होती की रमजान माह के शुरू होते ही ईद की चर्चा चौपालों व चौराहों पर होने लगती।छोटे से मुन्नू मियाँ उछल कर कह पड़ते की इस बार अब्बा से कहकर एक शानदार कुर्ता व पायजामा सिलवाना है तो नन्हां सा राशिद बोल पड़ता कि इस बार हम तो कमीज़ व पैंट सिलवाएँगे। छोटी बच्चियों की अलग अलग राग होती कोई लहंगा तो कोई फ्रॉक की डिमांड करती। कोई टोपी खरीदने की तो कोई मेले की ही बात छेड़ पड़ता।
ईद का ऐसा नशा की बच्चों की टोली दो तीन बार ईदगाह का जायज़ा लेने पहुंच जाती कि देखा जाए क्या तैयारियाँ चल रही हैं। बच्चों की टोली ईद की मदहोशियों में कह उठती की “ईद-बकरीद-सुबरात बड़ी भारी, कल्लू के अब्बा की बड़ी बड़ी दाढ़ी” और फिर दूर भाग खड़ी होती। इसके अलावा एक स्लोगन यह भी बच्चे ख़ूब कहते कि- ‘सब्र करो सब्र करो सब्र बड़ी चीज़ है, आज शाम को चाँद निकला कल सबेरे ईद है’।