उत्तर प्रदेशगोरखपुर

जाने कितनी दरारें हैं फिर भी कैसा रिश्ता है टूटता ही नहीं : नुसरत अतीक “गोरखपुरी”

गोरखपुर। अदबी दुनियाँ में ऐसी कम शख्सियतें हैं जिन्होंने बहुत कम उम्र में शोहरत की बुलंदियों को छू लिया है । गोरखपुर की हरदिल अज़ीज़ शायरा नुसरत अतीक़ गोरखपुरी का शुमार ऐसी ही शख्सियतों में होता है जिन्होंने बहुत कम मुद्दत में शेरो अदब की दुनिया में अपना मुनफ़रिद नाम पैदा किया है। नुसरत अतीक़ का असली नाम “नुसरत जहाँ ” काज़मी है मगर कलमी दुनिया में उन्हें नुसरत अतीक़ के नाम से जाना पहचाना जाता है उनके वालिद मरहूम अतीक़ अहमद काज़मी और बड़े वालिद मरहूम एम कोठियावी “राही ” अपने ज़माने के ज़माना साज़ लोगों में शुमार किए जाते थे राही ” साहेब एक बुलंद पाया अदीब , शायर और सहाफी़ थे, यूँ तो नुसरत अतीक़ 1998 से शेर कह रही हैं मगर समाजी और पारिवारिक बंधनों के कारण किसी को सुनाने से डरती थी अलबत्ता दूसरों के नाम से पत्र पत्रिकाओं में छपती भी रहती थी, 2014 से ये सिलसिला फिर चल निकला ,उनके शौहर श्री अरशद अहमद की ख़्वाहिश और हौसला अफ़जा़ई पर नुसरत ने शादी के बाद दुबारा लिखना और छपना शुरू किया फे़स बुक का समय आ चुका था जिसने दोस्तों और पसंद करने वालों की मोहब्बतों में ईजा़फा़ किया जिनकी तादाद कई हज़ारों में पहुंच चुकी है। नुसरत खु़द बताती हैं कि 2018 में मेरे शहर के मक़बूल और मारूफ़ शायर आलमी शोहरत के मालिक और मेरे पारिवारिक सदस्य डॉ कलीम क़ैसर सर ने मुझे सुना और अच्छे और मेयारी मुशायरों में पढ़ने का मशवरा दिया फिर क्या था मुझे घर के अफ़राद खास तौर से मेरे शौहर और सुसराल वालों की मुझे इजाज़त मिल गयी और मुशायरों की दुनिया का सफ़र तय होने लगा ये सिलसिला मुल्क भर में फैल चुका है आप सब की दुआओं का सहारा चाहिए। 2021 में उनके 2 शेरी मजमूआ “एहसास की अमर बेल” के उनवान से गज़ल नज़्म क़तआत का कलेक्शन मंज़रे आम पर आ चुका है जिसने नुसरत की अदबी शिनाख़्त बनाने में बड़ी मुआवेनत की । नुसरत के 2 शेरी मजमूए “सुलगते एहसास “और “एहसास का दर्पण” मार्च 2023 में यानी आज कल में आने वाले हैं जिसका उनके शायक़ीन को बेसब्री से इंतेज़ार है । नुसरत अतीक़ की शायरी में औरत की इस्मत ओ अज़मत का सुराग़ मिलता है उनके पढ़ने का अंदाज़ इतना दिलकश है जिसकी कशिश से हर सुनने वाला मुतास्सिर हुए बगै़र नहीं रहता उनकी महबूबियत में उनकी शायरी के इलावा उनकी आवाज़,उनके रखरखाव का भी दख़ल है ।

पेश हैं नुसरत अतीक़ के कुछ आशआर –

हम तुम्हे बद्दुआ नहीं देंगे
इतनी लंबी सजा़ नहीं देंगे
नक्शे अव्वल हूंँ कोई हरफे़ ग़लत तो हूंँ नहीं
तुम मिटाना चाहते हो तो मिटा कर देख लो,
राख को देख कर हुआ महसूस
आग में कितनी परदा दारी है।
मुद्दत के बाद उसने जो आवाज़ दी मुझे
हैरत से मेरे पांव ज़मीं से चिपक गए।
कोई कहां तलक तुम्हे रस्ता बताएगा
पैदल चलो तो शहर समझ में भी आएगा
घर की परदा दारियों की फि़क्र नुसरत किसको थी
घर के ही कुछ लोग दीवारों में दर करते रहे
हम चरागे़ वफा़ बनाते हैं
वो डरें जो हवा बनाते हैं
समझते हैं की हुशियारी बहुत है
यही लोगों में बीमारी बहुत है

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