प्रयागराज : व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नष्ट कर रही तर्कहीन गिरफ्तारियां
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोहत्या के एक मामले में आरोपी की अग्रिम जमानत इस आधार पर स्वीकार की कि प्राथमिकी दर्ज होने के बाद पुलिस अपनी इच्छानुसार गिरफ्तारी कर सकती है, जिस आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, उसे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस का कोई निश्चित समय नहीं होता है। हालांकि गिरफ्तारी पुलिस के लिए अंतिम विकल्प होना चाहिए और इसे केवल उन असाधारण मामलों तक सीमित रखा जाना चाहिए, जहां आरोपी को गिरफ्तार करना अनिवार्य हो या हिरासत में लेकर उससे पूछताछ की आवश्यकता हो।
तर्कहीन और अंधाधुंध गिरफ्तारियां मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकलपीठ ने पुलिस स्टेशन लंका, वाराणसी में गोहत्या अधिनियम, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम और आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज मामले के आरोपी मोहम्मद ताबीस रजा को जमानत देते हुए की। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारियां पुलिस में भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत हैं।
कोर्ट ने पुलिस कार्यवाही और अनुचित गिरफ्तारी पर चिंता जताते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक बहुत ही कीमती मौलिक अधिकार है और इसे तभी खतरे में डाला जा सकता है, जब ऐसी अनिवार्यता हो। किसी भी मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार ही आरोपी की गिरफ्तारी होनी चाहिए। हालांकि अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा गया कि केवल काल्पनिक भय के आधार पर अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है। इस पर कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ मामला दर्ज होने के बाद यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि पुलिस उसे कब गिरफ्तार करेगी।