सामाजिक व्यवस्था में पीछे छोड़ दिये गए अपने बन्धुओं को साथ लेकर चलना चाहती हैं आरएसएस : राष्ट्रवादी चिंतक राजेश खुराना
अपील - जाति जनगणना का इस्तेमाल छुआछूत के कारण पिछड़ रहे समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए : राष्ट्रवादी चिंतक राजेश खुराना
ख्वाजा एक्सप्रेस संवाददाता
आगरा।लोकसभा चुनाव में इस साल बीजेपी को झटका लगा। इसकी बड़ी वजह रही कि विपक्ष एससी/एसटी वोटरों में ये भ्रम फैलाने में सफल रहा कि आरक्षण और संविधान ख़तरे में है, और इस आग में घी डालने का काम कुछ बीजीपी में अपना दबदबा क़ायम रखने बाले नेताओं ने भी खुले मंच से किया। अगड़े वोटर नाराज ना हो जाएं इसलिए अलाकमान भी चुप रहा और चुनावों में अपनी चुप्पी का नुकसान भी झेल रहे हैं, लेकिन इस बीच आरएसएस का दलितों और पिछड़ों के बीच और ज्यादा फोकस रहा, क्योंकि उनको पता हैं कि हिंदू वोट बैंक दलितों पिछड़ों की भागीदारी के बिना अधूरा है। इसीलिए जाति जनगणना का समर्थन करके संघ सामाजिक व्यवस्था में पीछे छोड़ दिये गए अपने बन्धुओं को साथ लेकर चलना चाहता हैं।
इस विषय पर वरिष्ठ राष्ट्रवादी चिंतक एवं आरएसएस की विचारधारा की गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ समाजसेवी राजेश खुराना ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामाजिक व्यवस्था में पीछे छोड़ दिये गए अपने बन्धुओं को साथ लेकर चलना चाहती हैं। आरएसएस ने स्पष्ट रूप से देश को बता दिया हैं कि वो जातिगत जनगणना के पक्ष में है। संघ पिछले दस सालों में बहुत बदला है। देश भर में संघ के क़रीब दो हज़ार प्रचारक होंगे और इनमें से क़रीब 20 फ़ीसदी से ज़्यादा दलित हैं। अब वो दिन दूर नहीं है, जब संघ का कोई दलित या आदिवासी स्वयंसेवक सरसंघचालक होगा। संघ की विचारधारा से सामाजिक व्यवस्था में पीछे छोड़ दिये गए अपने बन्धुओं को जोड़ना है और वो जुड़ रहे हैं। राष्ट्रहित में आरएसएस के इस व्यान से सभी जातीय पृष्ठभूमि वाले वंचित युवा धीरे-धीरे आकर्षित हो रहे हैं। संघ हमेशा से ही छुआछूत विहीन और जाति विहीन समाज का समर्थक रहा है। संघ के कार्यक्रमों और कार्यों में भी कहीं जाति नजर नहीं आती है। जाति को लेकर संघ ने अपने विचार बदलें हैं, आरएसएस का लक्ष्य हिंदू समाज में छुआछूत और ऊंच-नीच के भाव को खत्म करके सभी हिन्दुओं में एकता का भाव भरना है। संघ जाति जनगणना की वकालत कर रहा है तो इसलिए कि छुआछूत के कारण जो समुदाय पीछे रह गए हैं, उन्हें आगे आने का मौका मिलना चाहिए। संघ हमेशा समाज के सभी वर्गों को लेकर चलता है। संघ वँचित वर्ग के जीवन के सभी विषयों को लेकर चिंता भी करता है और प्रमुख बैठकों में इसकी चर्चाएं भी होती है।आरएसएस भी अपनी पहुंच को बढ़ाने के लिए विभिन्न स्वतंत्र हिंदू संगठनों और दबाव समूहों के साथ मजबूत संबंध बनाने की कोशिश करता रहा है। इसीलिए विहिप को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और झुग्गी बस्तियों की आबादी के बीच सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया है। खासकर दिवाली से पहले। सामाजिक समरसता अभियान आमतौर पर आरएसएस शाखा स्तर के कार्यकर्ताओं के द्वारा दलितों के लिए मंदिरों और कुओं तक पहुंच सुनिश्चित करने से जुड़ा होता है।
उन्होंने कहा कि इस समय देश में माहौल बन रहा है जातिगत जनगणना के लिए, ऐसे में संघ पर संविधान विरोधी और आरक्षण विरोधी होने के आरोप पहले लगते रहे हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस विषय पर अपना रुख स्पष्ट करना शुरू कर दिया है। संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख ने जातीय जनगणना को लेकर जोरदार बयान दिया कि जातिगत आंकड़ों का इस्तेमाल अलग-अलग जातियों और समुदायों की भलाई के लिए करना चाहिए। देश और समाज के विकास के लिए सरकार को डेटा की जरूरत पड़ती है। समाज की कुछ जाति के लोगों के प्रति विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। इन उद्देश्यों के लिए जाति जनगणना करवाना चाहिए। इसका इस्तेमाल लोक कल्याण के लिए होना चाहिए। आरएसएस ने यह भी कहा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण की दिशा में कोई भी कदम संबंधित समुदायों की सहमति के बिना नहीं उठाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, आरएसएस ने स्पष्ट रूप से देश को बता दिया हैं कि वो जातिगत जनगणना के पक्ष में है। देश के संविधान और आरक्षण के पक्ष में होने वाले संघ परिवार को सामाजिक व्यवस्था में पीछे छोड़ दिये गए अपने दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और ग़रीब-वंचित समाज की भागीदारी की चिंता है। संघ ने यह बयान वँचितों की जरूरतों को पूरा करने के लिए दिया है। क्योकि सरकारी योजनाओं को ठीक से लागू करने के लिए इस तरह के आंकड़ों की जरूरत होती है। सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए विशेष रूप से जो जाति पिछड़ रही है, उन पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होती है और इसके लिए अगर सरकार को कभी आँकड़ों की ज़रूरत है। इसलिए संघ का मानना है कि संवैधानिक आरक्षण बहुत महत्वपूर्ण है। संघ ने इसका हमेशा समर्थन किया है। अब चूंकि आरएसएस ने जाति आधारित जनगणना को कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में अहम बताया है तो बीजेपी को इस मामले में फ़ैसला लेने में आसानी हो सकती है।
उन्होंने आगे कहा, जातिगत जनगणना पर संघ का बयान ऐसे समय आया है, जब देश में यूपी, विहार, हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। विपक्ष इन राज्यों में भी जातिगत जनगणना को मुद्दा बना रहा है। ऐसे में संघ ने यह बयान देकर विपक्ष के इस मुद्दे की धार को खत्म कर दिया है। संघ के इस व्यान ने विपक्ष के हथियार की धार को नष्ट कर दिया हैं। क्योकि संघ नहीं चाहता की आपसी मनमुटाव के कारण बीजेपी कमजोर हो। बीजेपी ने भी कभी जातिगत जनगणना का खुल कर विरोध नहीं किया और न खुद को इसका विरोधी बताया लेकिन अब संघ के बयान से बीजेपी के रुख में बदलाव आया है और जातिगत जनगणना पर बीजेपी का रुख बदला है। अब सरकार अगली जनगणना में इस पर बड़ा कदम उठा सकती है। यह भी संभव है कि अगली जनगणना से पहले जातिगत जनगणना पर सरकार के रुख में बदलाव आएगा। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 मनमोहन सिंह की सरकार जातिगत जनगणना को लेकर सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गई थी। लेकिन 2011 में हुई जनगणना में जाति को नहीं जोड़ा गया। इसकी जगह पर सरकार ने सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) करायी थी लेकिन इसके आंकड़े आज तक नहीं जारी किए गए और लगातार हार से परेशान विपक्ष को अब अपनी मुक्ति का मार्ग जातिगत जनगणना, संविधान की रक्षा और आरक्षण में नजर आ रहा है। इसलिए अब विपक्षी नेता जोर-शोर से जातिगत जनगणना की वकालत कर रहे है। जबकि पिछले एक दशक से देश में जातिगत जनगणना की मांग जोर पकड़ रही है। जाति जनगणना 2021 में ही शुरू हो जानी चाहिए थी, लेकिन कोरोना के चलते इसे टालना पड़ा था। अब संसद में महिलाओं को मिले 33 फीसदी आरक्षण को लागू करने के लिए भी जाति जनगणना के आंकड़े जरूरी हैं। अब खबर है कि आरएसएस की भी सहमति के बाद मोदी सरकार जाति जनगणना कराएगी। इस पर मंथन तेजी शुरू हो चुका है और जल्दी ही इसकी प्रक्रिया का आधिकारिक ऐलान होगा। यदि जरूरी होगा तो जाति का कॉलम भी जनगणना के फॉर्म में दर्ज किया जाएगा। इस संबंध में भी जल्दी ही फैसला भी हो सकता है। कहा जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व और मोदी सरकार का बदला हुआ रुख आरएसएस के स्टैंड के चलते भी है। बिहार देश का ऐसा पहला राज्य था, जहां जातिगत जनगणना कराई गई और फिर उसके आधार पर ही आरक्षण की सीमा को भी बढ़ा दिया गया। इसलिए राष्ट्रहित में हमारी सरकार से अपील हैं कि जाति जनगणना का इस्तेमाल छुआछूत के कारण पिछड़ रहे समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए।